गुड़ी पड़वा को होता है हिन्दू नव वर्ष आरंभ

 

 

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। चैत्र माह में नवरात्र के आरंभ पर गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष का आरंभ माना जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होता है।

कहते हैं शालिवाहन नामक एक कुम्हार पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से प्रभावी शत्रुओं का पराभव किया। इस विजय के प्रतीक रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है। युग और आदि शब्दों की संधि से बना है युगादि। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में उगादि और महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है।

कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसमें मुख्यतः ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी देवताओं, यक्ष राक्षस, गंधवारें, ऋषि मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु पक्षियों और कीट पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है।

इसी दिन से नया संवत्सर आरंभ होता है, अतः इस तिथि को नव संवत्सर भी कहते हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। इसे औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है। इसीलिये इस दिन को वर्षारंभ माना जाता है।

इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखा जाना चाहिये।

यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के खगोल शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि की संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिये चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव वर्षारंभ माना जाता है।

ईस्वी संवत का संबंध जिस प्रकार ईसा से है उसी प्रकार हिजरी संवत का संबंध मुस्लिम जगत और हजरत मोहम्मद से है, किन्तु विक्रम संवत का संबंध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिये भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है।

इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रंथों वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय में मंत्र क्रमाँक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है। विश्व को सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रों की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर आधारित हैं।

यह ईसाई कैलेण्डर से 57 साल आगे है। ईसाई कैलेंडर जहाँ अभी वर्ष 2017 तक ही पहुँचा है, वहीं भारतीय कैलेण्डर शनिवार 06 अप्रैल को गुड़ी पड़वा के दिन 2076 वे वर्ष में प्रवेश कर जायेगा। इसी दिन से चैत्र नवरात्र प्रारंभ होंगे जिसका समापन रामनवमीं पर होगा।