यह है गुड़ी पड़वा मनाये जाने का राज

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। छः अप्रैल को विक्रम संवत् 2073 का प्रारंभ होगा। इसी दिन हिन्दू कैलेण्डर आरंभ होता है। सिंधी नववर्ष चेटीचण्ड उत्सव भी इसी दिन आरंभ होता है, जो चैत्र की द्वितीया को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस शुभ दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ, जो वरूण देव के अवतार हैं।

कितने वर्ष पुरानी है हमारी सृष्टि : ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये विक्रम संवत् के नये साल का आरंभ भी इसी दिन माना गया है। लगभग एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 116 वर्ष पूर्व इसी दिन ब्रह्माजी ने जगत की रचना की थी। इसी दिन सबसे पहले सूर्याेदय हुआ था। भगवान ने इस प्रतिपदा तिथि को सर्वाेत्तम तिथि कहा था। इसलिये इसको सृष्टि का प्रथम दिन भी कहते हैं।

ये होते हैं अनुष्ठान : सृष्टि का पहला दिन होने के कारण गुड़ी पड़वा के दिन से संवत्सर की पूजा, चैत्र नवरात्र में घटस्थापना, ध्वजारोपण आदि विधान होते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा बसन्त ऋतु में आती है। इस ऋतु में पूरी सृष्टि पर सौंदर्य की छटा बिखर जाती है।

विजय के बाद फहरायी जाती है गुड़़ी : गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। माना जाता है कि इस दिन शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिकों का निर्माण किया था एवं एक सेना बनाकर उस पर पानी छिड़ककर दिया और उसमें प्राण फूंक दिये थे। उसने इस सेना की सहायता से शक्तिशाली दुश्मनों पर विजय प्राप्त कर ली थी। इसी विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक की शुरूआत हुई।

गुलामी की निशानी अंग्रेजी कैलेण्डर : महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और कश्मीर में हिन्दुओं के लिये नववर्ष एक अहम उत्सव है। यह पर्व सभी को एक संस्कृति से जोड़ता है। बताया जाता है कि अंग्रेजों की गुलामी का ही नतीजा है कि आज कई लोग गुड़ी पड़वा को भूल रहे हैं और जनवरी से अंग्रेजी कैलेण्डर को ही नया वर्ष मानने लगे हैं।

भारतीय हैं तो विक्रम संवत भी मनायें : लोगों को बताना चाहिये कि भारतीय नववर्ष विक्रम संवत है, जो छः अप्रैल से आरंभ होने वाला है। नये साल में भी 12 माह होते हैं। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।