(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। शासन – प्रशासन नरवाई न जलाने के लिये लगातार किसानों को अवगत करा रहा है। ऐसा किये जाने पर कार्यवाही की चेतावनी भी दी जा रही है, लेकिन कहीं – कहीं अब भी किसान नरवाई पर आग लगाकर दूसरे किसानों के लिये समस्या खड़ी कर रहे हैं।
नरवाई जलाने से नष्ट होती है मिट्टी की शक्ति : किसानों को जागरुक करते हुए कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जिन कृषकों के खेतों पर गेहूँ की फसल पक कर कटाई हेतु तैयार है। ऐसे किसान कटाई के लिये कम्बाइन हारवेस्टर मशीन से कटाई करने के उपरंात गेहूँ के अवशेष नरवाई को आग न लगायें, बल्कि कृषक इन अवशेषों को कटाई के उपरांत रोटावेटर से जुताई करके एक पानी लगा दें तो फसलों के अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं साथ ही 20-35 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डाल देने से अवशेषों के विगलन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है अथवा गेहूँ फसल कटाई के बाद जल की कमी वाले खेतों में फसल के अवशेषों नरवाई पर कचरा अपघटक वेस्ट डीकम्पोजर या बायोडायजेस्टर का घोल तैयार कर खेत में छिडकाव एवं जब किसान खेत में सिंचाई करेंगे तो विघटन की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।
किसी भी दृष्टिकोण से फसल अवशेष नरवाई को जलाना उचित नहीं है। इसलिये किसानों से कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कहा जा रहा हैै कि अपनी मृदा की उर्वरा शक्ति एवं पशुओं की सेहत का ख्याल रखने के साथ ही पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिये फसल अवशेष नरवाई को आग न लगायें एवं कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की सलाह पर ध्यान दें।
नरवाई जलाने से ये हैं हानियां : कृषि वैज्ञानिक एन.के. सिंह के मुताबिक नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरक शक्ति में कमी होती है। खेत में उपलब्ध मूल्यवान कार्बनिक पदार्थाे का ह्रास होता है। मृदा में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवों को नुकसान होता है। मिट्टी की उपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट एवं केंचुआ आदि नष्ट हो जाते हैं। नरवाई के जलाने से प्रक्षेत्र की जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है। मृदा की उपरी परत कड़ी होने से वायु संचार एवं जल अवषोषण की समस्या बनती है। आग से पर्यावरण व स्थानीय पशु, पक्षी एवं जीव जंतुओं को अत्यधिक नुकसान होता है।