आस्थाओं परंपराओं के नाम पर देवतुल्य वृक्षों का न करे संहार
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। गौ, गीता, गंगा महामंच के अध्यक्ष पं.रविकान्त पाण्डेय ने कहा है कि हरियाली है तो जीवन है। होली जलाने के लिये पेड़ न काटे जायें। हर उत्सव त्यौहारों के पीछे एक संदेश व आशय होता है।
उन्होंने कहा कि नये अनाज के आने पर होला भूंज कर सबसे पहले लोग परम पिता परमेश्वर को भोग लगाते हैं। आग पर भूने गये इस अनाज को प्रभु को समर्पित कर प्रसाद स्वरूप स्वयं खाते हैं और खिलाते हैं। भारत कृषि और पशुधन प्रधान देश है। यहाँ पशु भी बहुतायत में होने से गोबर भी होता है, इसलिये लोगों को लकड़ी की जगह कण्डे की होली जलाना चाहिये।
महामंच के पं.रविकान्त पाण्डेय ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पेड़ – पौधों को भी भगवान मानकर पूजा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता वृक्षों में पीपल की महत्ता को रेखांकित किया है। इसके अलावा आँवला नवमीं पर आँवले की पूजा विधि – विधान से की जाती है।
उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि – मुनि वृक्षों के महत्व, प्रकृति के संरक्षण में उनके योगदान और मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति सजग रहे हैं, लेकिन वर्तमान में लोग अपने स्वार्थवश पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करने में जुटे हैं, जिससे प्रकृति में असंतुलन पैदा हो गया है।
उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्थाओं के नाम पर होली जलाने के लिये जो अंधाधुंध लकड़ी का प्रयोग कर रहे हैं, उससे पेड़ – पौधे तो नष्ट हो ही रहे हैं, वायु मण्डल भी प्रदूषित हो रहा है। समय रहते हमें कर्मकाण्डों हेतु लकड़ी का विकल्प स्वीकार कर लेना चाहिये और लकड़ी के स्थान पर गोबर के कण्डे का अधिकतम प्रयोग करना चाहिये।
रविशंकर पाण्डेय ने कहा कि होलिका दहन का मतलब लकड़ियां जलाकर परंपरा के नाम पर दस्तूर निभाना नहीं है, वरन अपने अंदर की बुराईयों को जड़ से मिटाने का है। परंपरा के नाम पर हरे – भरे पेड़ों को काटना मूर्खता है, क्योंकि पेड़ हमारे जीवन का आधार हैं। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, इसलिये लोग पेड़ों को काटें नहीं बल्कि होली के पर्व पर परिवार का हर सदस्य एक पौधा अवश्य लगायें।
उन्होंने कहा कि वृक्ष हमारे मित्र होते हैं। इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि यह सभी जीव – जंतुओं को ऑक्सीजन के रूप में प्राण वायु देते हैं। इसके अलावा कार्बन डाइ ऑक्साईड और वातावरण को गर्म करने वाली नुकसान दायक गैसों को सोख लेते हैं। साथ ही धरती के कटाव को रोककर जल संरक्षण भी करते हैं, इसलिये लोग हरे – भरे पेड़ों की बलि न लें, बल्कि जीवन में एक पेड़ लगाकर पर्यावरण सुधारने में सहायक बनें।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में प्रदूषित वातावरण एक विकराल समस्या बन चुका है। ऐसे में हम अगर पेड़ काटकर होली जलायेंगे तो ये हमारी ही क्षति होगी। इस लिये सभी लोग एकजुट होकर न ही लकड़ी की होली जलायें और न ही किसी को हरे – भरे पेड़ काटकर होली जलाने दें।
रवि शंकर पाण्डेय ने आगे कहा कि पेड़ – पौधे जीवन के लिये उपयोगी होते हैं। इनके संरक्षण से ही हमारा जीवन सुरक्षित रहेगा। होली पर लोग पेड़ न काटें, बल्कि इस अवसर पर वृक्षारोपण का संकल्प लें, ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रहे। इसके लिये लकड़ी की जगह कण्डों का उपयोग करना चाहिये, जिससे गौ, गीता, गंगा और पर्यावरण सुरक्षित रहे।