बदहाल स्थिति में रह रहे छात्रावास के बच्चे!

 

 

स्वच्छता अभियान को लग रहा पलीता, लाखों-करोड़ों खर्च, सुविधाएं नगण्य

(सादिक खान)

सिवनी (साई)। भले ही देश प्रदेश की सरकारों के द्वारा स्वच्छता अभियान को लेकर लाख जतन किये जा रहे हों किन्तु सरकारी विभागों में ही स्वच्छता अभियान दम तोड़ता दिखता है। लाखों करोड़ों रुपए व्यय करने के बाद भी आदिवासी विकास विभाग के छात्रावासों के शौचालय गंदगी से बजबजाते दिख रहे हैं।

आदिवासी विकास विभाग के अंतर्गत संचालित होने वाले छात्रावासों की हालत देखने के बाद यही प्रतीत होता है कि आदिवासी विकास विभाग के अधिकारियों के द्वारा छात्रावासों की पूछ परख नहीं की जाती है। लाखों करोड़ों रुपए कहाँ व्यय कर दिये जा रहे हैं, यह शोध का ही विषय माना जा सकता है।

जिला मुख्यालय की सीमा से लगे हुए बींझावाड़ा ग्राम स्थित आदिवासी बालक छात्रावास को देखकर यही प्रतीत होता है कि इस छात्रावास की सुध सालों से किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के द्वारा नहीं ली गयी है। यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि इस छात्रावास से महज चंद मीटर दूरी पर ही जिला पंचायत का कार्यालय स्थापित है।

बताया जाता है कि इस छात्रावास में विद्यार्थियों के सोने के पलंग जर्जरावस्था को प्राप्त हो चुके हैं। फटे और बदबूदार गद्दों में विद्यार्थी किस तरह शयन करते होंगे यह बात सोचकर ही आश्चर्य होता है। यहाँ मच्छरों का प्रकोप है पर मच्छरदानियां गायब हैं। शौचालयों की हालत देखकर उबकाई आना स्वाभाविक ही प्रतीत होता है।

आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त कार्यालय के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि जिले के छात्रावासों के संचालन के लिये प्रदेश शासन के द्वारा पर्याप्त मात्रा में बजट का आवंटन किया जाता है। यह बजट खर्च भी किया जाता है किन्तु यह बजट कहाँ खर्च किया जा रहा है यह बात शायद ही कोई जानता हो।

सूत्रों ने बताया कि शासन के द्वारा छात्रावास भवनों के संधारण (रखरखाव) हेतु भी पर्याप्त मात्रा में आवंटन दिया जाता है। संधारण के अभाव में इस छात्रावास भवन में बारिश के दिनों में जगह – जगह पानी रिसता दिख जाता है। शौचालयों के आसपास गंदगी पसरी हुई है। शौचालयों के दरवाजे तक टूटे हैं।

इसके साथ ही सूत्रों ने कहा कि आदिवासी विकास विभाग पर सामान्यतः किसी की नजरें इनायत न होने के कारण इस विभाग के अधिकारियों के द्वारा अपनी मनमानी को अंजाम दिया जाता है। जिले के सुदूर ग्रामीण अंचलों से आने वाले भोल-भाले विद्यार्थी वैसे भी इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि उन्हें कम से कम जिला मुख्यालय में रहने को आसरा तो मिल रहा है।

सूत्रों की मानें तो आदिवासी विकास विभाग में छात्रावास अधीक्षक का पद मलाईदार माना जाता है। इस पद पर सालों से जमे अधीक्षकों के स्थानांतरण न किये जाने से इस तरह की विसंगतियां सामने आती हैं। सूत्रों ने बताया कि भले ही सहायक आयुक्त के द्वारा जगह – जगह जाकर शालाओं का निरीक्षण किया जा रहा हो किन्तु उनके द्वारा जिला मुख्यालय सीमा से लगे इस छात्रावास का निरीक्षण निश्चित तौर पर नहीं किया गया होगा, अन्यथा यह छात्रावास इस तरह की दुरावस्था को प्राप्त नहीं करता।