(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। दुर्गा देवी की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिये दुर्गा सप्तशती का पाठ सर्वाेत्तम है। भुवनेश्वरी संहिता में कहा गया है कि जिस प्रकार से वेद अनादि हैं, उसी प्रकार सप्तशती भी अनादि है। दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में देवी चरित्र का वर्णन है।
दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं। दुर्गा सप्तशती के सभी 13 अध्याय अलग – अलग इच्छित मनोकामना की पूर्ति करते हैं। मनुष्य की इच्छाएं अनंत है और इन्ही की पूर्ति के लिये दुर्गा सप्तशती से सुगम और कोई भी मार्ग नहीं है। इसीलिये नवरात्र में विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ करने का विधान है।
प्रथम अध्याय : इसके पाठ से सभी प्रकार की चिंता दूर होती है एवं शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भी भय दूर होता है शत्रुओं का नाश होता है।
द्वितीय अध्याय : इसके पाठ से बलवान शत्रु द्वारा घर एवं भूमि पर अधिकार करने एवं किसी भी प्रकार के वाद विवाद आदि में विजय प्राप्त होती है।
तृतीय अध्याय : तृतीय अध्याय के पाठ से युद्ध एवं मुकदमे में विजय, शत्रुओं से छुटकारा मिलता है।
चतुर्थ अध्याय : इस अध्याय के पाठ से धन, सुन्दर जीवनसाथी एवं माँ की भक्ति की प्राप्ति होती है।
पंचम अध्याय : पंचम अध्याय के पाठ से भक्ति मिलती है। भय, बुरे स्वप्नों और भूत प्रेत बाधाओं का निराकरण होता है।
छठा अध्याय : इस अध्याय के पाठ से समस्त बाधाएं दूर होती हैं और समस्त मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
सातवां अध्याय : इस अध्याय के पाठ से ह्रदय की समस्त कामना अथवा किसी विशेष गुप्त कामना की पूर्ति होती है।
आठवां अध्याय : अष्टम अध्याय के पाठ से धन लाभ के साथ वशीकरण प्रबल होता है।
नौवां अध्याय : नवम अध्याय के पाठ से खोये हुए की तलाश में सफलता मिलती है, संपत्ति एवं धन का लाभ भी प्राप्त होता है।
दसवां अध्याय : इस अध्याय के पाठ से गुमशुदा की तलाश होती है, शक्ति और संतान का सुख भी प्राप्त होता है।
ग्यारहवां अध्याय : ग्यारहवें अध्याय के पाठ से किसी भी प्रकार की चिंता से मुक्ति, व्यापार में सफलता एवं सुख – संपत्ति की प्राप्ति होती है।
बारहवां अध्याय : इस अध्याय के पाठ से रोगों से छुटकारा, निर्भयता की प्राप्ति होती है एवं समाज में मान सम्मान मिलता है।
तेरहवां अध्याय : तेरहवें अध्याय के पाठ से माता की भक्ति एवं सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
(यहाँ दी गयी जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य लोकरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है)