जीवन जैसी ही मृत्यु

 

 

(प्रणव प्रियदर्शी)

जीने की इच्छा जब साथ छोड़ने लग जाए तो क्या किया जा सकता है? जिसके जीने की इच्छा खत्म हो रही हो वह क्या करे और उसके आसपास के लोग क्या करें? जब किसी बुजुर्ग की मौत निकट दिखने लगती है तो उसके मुंह में परिवारजनों के हाथों से तुलसी गंगाजल दिलवाने का चलन भी है देश के, खासकर उत्तर भारत के कई हिस्सों में। माना जाता है कि इससे मृत्यु के बाद उसकी यात्रा सुगम होगी।

कुछ ऐसा ही मुंबई के मीरा रोड स्थित उस बड़े से अस्पताल में दिखा था। एक बड़े धार्मिक संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट द्वारा चालित उस अस्पताल में चलन यह था कि जब किसी मरीज की हालत ज्यादा बिगड़ जाती और लगता कि यह नहीं बचेगा तो उसे भजन या धर्मग्रंथों के अंश सुनाए जाने लगते थे। अस्पताल प्रबंधन से जुड़े लोग इसका जिक्र अपनी विशिष्टता के रूप में करते थे लेकिन मुंबई के चिकित्सा हलकों में अच्छा नाम कमा चुके एक युवा डॉक्टर ने इस अस्पताल से मिले अच्छे पैकेज वाला ऑफर इसी वजह से ठुकरा दिया। उसका कहना था कि यह चलन डॉक्टरी पेशे की मूल भावना के खिलाफ है और मैं ऐसे किसी अस्पताल से नहीं जुड़ सकता जो जिंदगी की जंग को कुछ पल भी पहले अधूरा छोड़ दे।

इसके पीछे मौजूद सोच पर उस डॉक्टर ने एक निजी बातचीत में कई तरह से सवाल उठाए। मसलन, यह कोई कैसे तय कर सकता है कि कोई मरीज अब मर ही जाएगा? और जैसे ही आपने उसे गीता के उपदेश सुनाने शुरू किए, वह तो ऐसा हदस जाएगा कि जो भी थोड़ी बहुत उम्मीद उसमें बाकी होगी, वह टूट जाएगी। तो फिर वह अपना संघर्ष कैसे जारी रखेगा? बतौर डॉक्टर हमारा काम है कि आखिरी दम तक जीवन को बचाने की कोशिश करते रहें। जब भी यह कोशिश नाकाम होती है, वह प्रफेशनली हमारी हार होती है। उस पर हम उदास होते हैं। यह कैसे हो सकता है कि हम कुछ पल पहले ही लड़ाई छोड़ दें?

बहरहाल, दिल्ली में पिता की बीमारी के दौरान एक अन्य बुजुर्ग डॉक्टर ने मुझे सलाह दी थी, अगर मौत तय है तो लाइफ सपॉर्ट सिस्टम के सहारे जबरन जिलाए रखने की कोशिश मत करो। यह जीवन का अपमान है। गरिमापूर्ण मौत भी जीवन की गरिमा का ही हिस्सा होती है। व्यक्तिगत तौर पर मैं यह फैसला एम्स के डॉक्टरों के विवेक पर छोड़ने को तैयार था कि कब लाइफ सपॉर्ट सिस्टम हटाना है लेकिन परिवार के अन्य सदस्य मेरी तरह निष्ठुर नहीं थे। सो, बारह दिन की कठिन यंत्रणा और झेली पिता ने, फिर आईसीयू में अनजान लोगों के बीच दुनिया से विदा ली।

(साई फीचर्स)