(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमीं 05 नवंबर को आँवला नवमीं के रूप में मनायी जायेगी। इसे अक्षय नवमीं भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं आँवले के वृक्ष की पूजा करती हैं। माना जाता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है।
मराही माता स्थित कपीश्वर हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी उपेंद्र महाराज ने बताया कि हिंदू धर्म में उन पौधों का सर्वाधिक महत्व है जो कि पर्यावरण और मनुष्य के स्वास्थ्य के लिये गुणकारी होते हैं। आँवला एवं आयुर्वेदिक औषधि है, इसके सेवन से अनेकों बीमारियों का उपचार होता है।
उन्होंने कहा कि इसलिये सनातन धर्म में आँवला को पवित्र वृक्ष की संज्ञा दी गयी है। इसके साथ इस वृक्ष का धार्मिक महत्व भी है। ग्रंथों में बताया गया है कि आँवला के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। साथ ही साल में एक दिन आँवला नवमीं को इस वृक्ष की पूजा की जाती है।
उन्होंने बताया कि सनातन हिंदू धर्म में पर्यावरण के लिये सर्वाधिक हितकारी वृक्षों में पीपल और बरगद के पेड़ के साथ आँवला को भी स्थान दिया गया है। हिंदू धर्म में पीपल, बरगद और आँवला के वृक्ष को काटने की मनाही है। साथ ही इन पौधों का संरक्षण किया जाये इसके लिये इनकी पूजा भी की जाती है।
तिथि का प्रारंभ : आँवला नवमीं की तिथि का प्रारंभ 05 नवंबर को सुबह 04 बजकर 56 मिनिट पर होगा जो कि 06 नवंबर को सुबह 07 बजकर 21 मिनिट तक आँवला नवमीं रहेगी।
महिलाएं संतान प्राप्ति के लिये रखतीं हैं व्रत : मान्यता है कि आँवला नवमीं पर माता लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु तथा शिव की पूजा आँवला के रूप में की थी। साथ ही इसी पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने भोजन ग्रहण किया था। यह भी माना जाता है कि आँवला के पेड़ के नीचे श्रीहरि के दामोदर स्वरूप की पूजा की थी।
पूजन विधि : महिलाएं स्नानादि से निवृत्त होकर आँवला के वृक्ष के नीचे साफ सफाई करती हैं। इसके बाद वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन करतीं हैं। पूजन में जल, दूध, कपूर, घी, मिठाई आदि को आँवला के पेड़ को अर्पित किया जाता है। साथ ही इसके चारों ओर कच्चा सूत (धागा) बांधा जाता है और इसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही इसी वृक्ष के नीचे बैठकर कर परिजन एवं मित्रों के साथ भोजन ग्रहण किया जाता है।

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