नशे में जमकर झूम रही युवा पीढ़ी!

 

शाम होते ही मयज़दों की बढ़ने लगती है तादाद!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। शाम ढलते ही शहर सहित जिले भर के आबादी वाले क्षेत्रों में मयजदे सड़कों पर उतर जाते हैं। तेज रफ्तार में दो पहिया वाहन लहराते हुए कानफाड़ू शोर वाले साईलेंसर और हॉर्न के साथ चलने वाले युवाओं से शहर के लोग आजिज आ चुके हैं। बड़ी तादाद में युवा सूखे और गीले नशे की जद में फंसते दिख रहे हैं।

जिले भर में पैकारों (शराब ठेकेदार के कारिंदों) के जरिये अवैध रूप से शराब बेचे जाने का सिलसिला भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में चरम पर था। अब सरकार बदलने के बाद भी यह बदस्तूर जारी है। शहर का शायद ही कोई मैदान ऐसा बचा हो जहाँ शराब की बोतलें, नमकीन के पाऊच, बीड़ी सिगरेट के डुट्ठे पड़े न दिख जायें।

बताया जाता है कि आबकारी विभाग एवं पुलिस की कथित अनदेखी का फायदा मयजदों के द्वारा जमकर उठाया जा रहा है। शराब दुकानों के पास अहाता न होने से आसपास की पान दुकानों में डिस्पोजेबल ग्लास, पानी के पाऊच आदि की बिक्री जोर शोर से की जाती है। इतना ही नहीं इन पान दुकानों के आसपास ही बैठकर मयजदे मदिरा पान करने से भी गुरेज नहीं करते हैं।

जिले भर के उन शाला भवनों जिनमें चारदीवारी नहीं है, को भी पियक्कड़ों के द्वारा ओपन बार में तब्दील कर दिया जाता है। शाला भवनों के मूत्रालय हों या सार्वजनिक मूत्रालय हर जगह शराब की खाली बोतलें इस बात की चुगली करती दिख जाती हैं कि इन स्थानों के आसपास भी शराबखोरी की जा रही है।

रविदास शिक्षा मिशन के अध्यक्ष रघुवीर अहिरवाल के द्वारा भी इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए एक विज्ञप्ति जारी की गयी थी। उन्होंने अपनी विज्ञप्ति में कहा है कि नशे में कुछ लोग आड़ी तिरछी गाड़ी चलाते हैं तो कुछ लोग पैदल ही लहराते हुए चलते हैं और आने जाने वालों से अभद्र व्यवहार करते नजर आते हैं।

रघुवीर अहरवाल द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया था कि जिले में रोजगार के साधनों का अभाव साफ परिलक्षित होता है, जिसके चलते अधिकांश बेरोजगार अवैध शराब के कारोबार में संलग्न हो चुके हैं। इसके कारण अपराध भी बढ़ रहे हैं और अराजकता का आलम भी पसर जाता है।

बताया जाता है कि जिले भर में शराब के नशे के अलावा सूखा नशा (नशे की गोलियां, इंजेक्शन, सुलोशन, आयोडेक्स आदि) ने भी युवाओं को अपनी चपेट में ले लिया है। युवा होती पीढ़ी को ये सारी चीजें बहुत ही आसानी से मुहैया हो जाती हैं। दवाई की दुकानों में भी नशा बढ़ाने वाली दवाओं का शायद ही हिसाब किताब रखा जाता हो।

जनापेक्षा व्यक्त की जा रही है कि जिले में रोजगार के साधनों को बढ़ाये जाने के साथ ही साथ खेलकूद की गतिविधियों एवं विभिन्न खेलों की स्पर्धाएं आदि के लिये माहौल तैयार करने के मार्ग प्रशस्त किये जायें ताकि नशे की जद में आती युवा पीढ़ी को इससे बचाया जा सके।

 

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