गाली पड़ी तो गले लगाया, जूस पिलाया घर भिजवाया

अपना एमपी गज्जब है..46

(अरुण दीक्षित)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को दिल्ली से इंदौर में मौजूद उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए एमपी को लेकर जो जुमला गढ़ा, एमपी की सरकार ने उस पर तत्काल अमल किया! पीएम ने कहा -एमपी अजब है..गजब है..और सजग भी है। इसे सबने सुना! लेकिन एमपी की सरकार ने इस पर सबसे पहले अमल किया।

चुनावी साल में तमाम तरह के दवाब झेल रही सरकार ने झारखंड के पारसनाथ पहाड़ (शिखर जी) विवाद के मद्देनजर राजधानी भोपाल में चल रहे करणी सेना आंदोलन को पूरी सजगता से आनन फानन में निपटा दिया। उसने न तो सेना के सैनिकों द्वारा मुख्यमंत्री को दी गईं गालियों को सुना और न ही उत्तेजक भाषणों पर गौर किया। चार दिन से भोपाल के पिपलानी इलाके में अनशन पर बैठे करणी सेना के नेताओं को मौके पर जाकर मनाया। उनकी मांगे मानने की बात कहते हुए लिखित आश्वासन दिया। आंदोलन और धरना खत्म कराया।

करणी सेना पर आगे बात करने से पहले आपको पारसनाथ पहाड़ के बारे में बताते हैं। झारखंड राज्य के गिरडीह जिले में एक बड़ी पर्वत श्रंखला है। स्थानीय संथाल आदिवासी इसे अपने देवता का पहाड़ मानते हैं। वे इसे मारंग बुरू कहते हैं। वे बैशाख में पूर्णिमा पर उस पहाड़ पर अपना शिकार त्योहार मनाते हैं।

जबकि जैन धर्म के अनुयाई इस पहाड़ श्रृंखला को सम्मेद शिखर जी कहते हैं। उन्होंने अपने 23वें तीर्थंकर के नाम पर इस पहाड़ का नाम पारसनाथ पहाड़ रखा है। कहा जाता है कि 20 जैन तीर्थंकरों ने इस पहाड़ पर मोक्ष प्राप्त किया था। इनमें से हर एक का मंदिर इन पहाड़ियों पर बना हुआ है। जैन धर्म का पालन करने वालों का यह सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है। हर साल पूरे देश से लाखों जैन पारसनाथ पहाड़ की यात्रा करते हैं।

पिछले दिनों केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था। जिसका जैन समाज ने राष्ट्रव्यापी विरोध किया। विरोध के आगे सरकार झुकी। उसने अपना फैसला वापस ले लिया।

सरकार के इस कदम से स्थानीय आदिवासी नाराज हैं। उनका कहना है कि हम यहां के मूल निवासी हैं। पहाड़ हमारा है। हम अपना त्योहार यहीं मनाते हैं। फिलहाल सरकार और बीजेपी आदिवासियों को मानने में लगे हुए हैं। क्योंकि बीजेपी को लगता है कि उसके लिए दोनो महत्वपूर्ण हैं। एक समाज के “नोट” उसके लिए जरूरी हैं तो दूसरे समाज के वोट उससे भी ज्यादा जरूरी हैं। इसी वजह से वह जैन समाज के बाद आदिवासी समाज को साधने में लगी हुई है।

अब बात करणी सेना के आंदोलन की! करणी सेना पिछले पांच दिन से भोपाल में आंदोलन कर रही थी। उसके 5 प्रतिनिधि अनशन पर बैठे हुए थे। सेना अपनी 21 मांगे लेकर भोपाल आई थी। OK

बताते हैं कि सरकार को यह पहले से मालूम था कि करणी सेना भोपाल में प्रदर्शन करने वाली है। इसे कमजोर करने के लिए बीजेपी के ही कुछ नेताओं और मंत्रियों ने 5 जनवरी को सीएम हाउस में राजपूत सम्मेलन करा दिया। उस सम्मेलन में राजपूतों से जुड़ी कई घोषणाएं भी की गईं। साथ ही उसी दिन रानी पद्मावती की मूर्ति लगाने के लिए भूमि पूजन भी मुख्यमंत्री ने कर दिया।

बीजेपी नेताओं के इस “खेल” से करणी सेना के नेता नाराज हो गए। उन्होंने रविवार को भोपाल में जंगी प्रदर्शन किया और फिर यही रुक गए। अगले दिन उन्होंने एक प्रमुख सड़क पर डेरा डाल लिया।

मुख्यमंत्री तो इंदौर में प्रवासी भारतीयों की अगवानी में लगे थे। इधर भोपाल में राजपूतों ने रायता फैला दिया। उन्होंने ऐलान कर दिया कि अब वे बीजेपी को वोट नहीं देंगे।

पिछले चार दिन में करणी सेना के पदाधिकारियों ने बीजेपी और उसकी सरकार की जमकर खिलाफत की। सभा में उत्तेजक नारे लगे। हद तो तब हो गई जब करनी सेना के कुछ युवा सदस्यों ने सड़क पर प्रदर्शन करते हुए मुख्यमंत्री को गन्दी और अश्लील गालियां दीं। उनको सोशल मीडिया पर वायरल किया।

होना तो यह चाहिए था कि मुख्यमंत्री को गालियां देने वालों को तत्काल पकड़ा जाता। लेकिन जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा कि एमपी सजग है..राज्य सरकार ने तत्काल “सजगता” दिखाई। सीएम हाउस में राजपूत सम्मेलन के सूत्रधार मंत्री ने ही धरना स्थल पर जाकर करणी सेना के नेताओं को आश्वासन पत्र दिया। उनकी 21 में 17 मांगे मानने की बात कही। उन्हें जूस पिलाया और हाथ जोड़ कर धरना खत्म कराया।

एक अन्य मंत्री ने भी करणी सेना के लोगों को “अपने ही आदमी” बताकर उनको फूलमालाएं पहनायीं!

इसके साथ ही करणी सेना का आंदोलन फिलहाल खत्म हो गया। लेकिन मुख्यमंत्री को गंदी गालियां देने का वीडियो लगातार वायरल हो रहा है।

अब यह सवाल पूछा जा सकता है कि ऐसी क्या मजबूरी है जो मुख्यमंत्री को सार्वजनिक रूप से गालियां देने वालों को बीजेपी सरकार गले लगा रही है। उन्हें गिरफ्तार करने के बजाय मालाएं पहनाई जा रही हैं! तो सवाल पूछने से पहले इतना जान लीजिए कि यह चुनावी साल है। इस साल गाली, जूता , लाठी और डंडा सब खाने के लिए तैयार है पार्टी!

वैसे भी परसराम पहाड़ के विवाद से आदिवासी नाराज हैं। मोटा चंदा देने वाले समाज के आगे उन्हें महत्व नही मिला है। अगर उनकी नाराजी झारखंड से निकल कर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश पहुंच गई तो विधानसभा चुनावों में मुश्किल हो जायेगी। क्योंकि इन दोनों राज्यों में आदिवासी निर्णायक भूमिका में हैं। इसी वजह से बीजेपी पूरे देश में आदिवासियों को “पूज” रही है। राष्ट्रपति की कुर्सी भी उन्हें दी गई है।

अब ऐसे में अगर राजपूत समाज का बड़ा और रसूख वाला धड़ा अगर खुला विद्रोह कर गया तो 2023 में 2018 को दोहराए जाने की संभावना और प्रबल हो जायेगी।

फिर खतरा क्यों मोल लिया जाए? शायद यही वजह रही होगी जो मध्यप्रदेश में “सजगता” दिखाई गई। मुख्यमंत्री को गालियां दी गईं तो क्या हुआ? गाली का बुरा मानने से ज्यादा जरूरी है वोट! इसलिए गाली देने वालों को जूस पिलाया और माला पहनाई!

बताइए अब क्या कहते हैं आप.. अपना एमपी गज्जब है! है कि नहीं? अरे अब तो पीएम भी कहते हैं एमपी गजब है.. अजब है.. सजग है..

(साई फीचर्स)