श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर तिघरा में जारी श्रीमद भागवत कथा
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। सदाचार का पालन करना मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है, अहंकार मनुष्य का सबसे शत्रु है। भगवान कृष्ण ने अहंकार रूपी कंस का वध कर उसका संहार किया था। भागवत सुनने से मन को शांति तो मिलती है ही साथ ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
उक्ताशय की बात श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर तिघरा में जारी श्रीमद भागवत कथा के दौरान कथा वाचक सुशीलानंद महाराज ने श्रद्धालुजनों से कही। उन्होंने आगे कहा कि भगवान सभी से प्रेम करते हैं, उन्होंने कई सखियों के संग प्रेम किया लेकिन वास्तविक मन का प्रेम तो राधा से ही किया।
गोवर्धन पर्वत पूजा का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि लोग देवराज इंद्र की पूजा करते थे। इससे इंद्र को घमण्ड हो गया था। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमण्ड नष्ट करने के लिये लीला रची। यह देखकर इंद्र ने लगातार बारिश आरंभ कर दी। गोकुल वासियों की रक्षा के लिये भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठा लिया। बाद में इंद्र का घमण्ड नष्ट हो गया और तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा का प्रचलन है।
उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य को अपने कर्म का फल भोगना पड़ता है। मनुष्य जैसे कर्म करता है उसे फल भी वैसे ही भोगने पड़ते हैं। प्रभु राम व कृष्ण ने मनुष्य रूप में दुष्टों का संहार करते हुए अनेक लीलाएं कीं। धर्म की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिये ही भगवान ने अवतार लिये। भगवान ने अवतार लेकर वकासुर, अघासुर, धेनुकासुर आदि राक्षसों का वध किया। इंद्र का अहंकार तोड़ने के लिये गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठा लिया।
उन्होंने कहा कि बुद्धि अल्पज्ञ और ईश्वर सर्वज्ञ है। बुद्धि प्रकाशित और ईश्वर प्रकाशमान है। मन की दो परिस्थिति होती हैं भय और लोभ। मन हमेशा भय या लोभ से ग्रसित होता हैं। मन ही माया के बंधन में बंधा रहता है, अतः मन ही बंधन का कारण है। इसलिये मन को गोविन्द के चरणों में लगा दो यही मुक्ति का साधन है।