पानी में कमायी करोड़ों, बचा रहे शुुद्ध विक्रयकर
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)। गर्मी का मौसम आते ही मशीन से ठण्डा किया गया पानी बेचने वालों की पौ बारह हो जाती है। नगर पालिका के साथ ही साथ स्वास्थ्य विभाग के अधीन आने वाले खाद्य एवं औषधि प्रशासन के द्वारा पानी की जाँच नहीं किये जाने से पंद्रह से पच्चीस लिटर के केन में ठण्डा पानी बेचने वालों के हौसले जमकर बुलंदी पर हैं।
बताया जाता है कि शहर के अंदर बीस से चालीस रुपये में लगभग बीस लिटर पानी देने का धंधा इन दिनों जमकर चल रहा है। यह पानी मिनरल वाटर के नाम पर बेचा जा रहा है। दिन भर में ये पानी बेचने वाले कितना पानी बेच रहे हैं, इनके चिलिंग प्लांट में कितनी साफ – सफाई है, यह बात इनके संचालकों के अलावा और कोई नहीं जानता है।
विक्रय कर विभाग के सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि एक अनुमान के अनुसार एक-एक चिलिंग और कथित रूप से लगाये गये मिनरल वाटर प्लांट के संचालक के द्वारा एक गर्मी के सीजन में पचास से सत्तर लाख रुपये प्रतिमाह की शुद्ध कमायी की जाती है।
सूत्रों का कहना है कि संचालकों के द्वारा इसमें से फूटी कौड़ी भी विक्रयकर विभाग को कर के रूप में नहीं दी जाती है। सूत्रों ने यह भी बताया कि यदा कदा पानी का धंधा करने वालों के द्वारा विक्रय कर, आय कर, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, खाद्य एवं औषधि प्रशासन, मुख्य नगर पालिका अधिकारी, जिला आपूर्ति अधिकारी आदि को कुछ तोहफे भेज दिये जाते हैं, जिससे इनके प्रतिष्ठानों में हिसाब – किताब और अन्य बातें देखने की फुर्सत भी अधिकारियों को नहीं रह जाती है।
बताया जाता है कि पाउच के साथ ही साथ बीस लिटर के जार में बिकने वाले इस ठण्डे पानी को पीकर लोग आंत्रशोध, अमीबाईसिस, गेस्ट्रोइंट्राईटिस आदि बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
लोगों का कहना है कि बीस लिटर के जार में पानी को शुद्ध माना जा सकता है पर एक हजार लिटर की टंकी को छोटा हाथी जैसे वाहन में रखकर उससे घर-घर, प्रतिष्ठान – प्रतिष्ठान जाकर अगर जार भरे जा रहे हैं तो इसकी शुद्धता कितनी रह जायेगी इस बारे में इसकी शुद्धता पर प्रश्न चिन्ह लगने लाजिमी ही हैं।