भेड़ बकरियों की तरह बैठाये जा रहे विद्यार्थी!

 

परिवहन विभाग व यातायात पुलिस को नहीं निरीक्षण की फुर्सत!

(अय्यूब कुरैशी)

सिवनी (साई)। जिले में संचालित निज़ि या सरकारी शालाओं में विद्यार्थियों को लाने ले जाने वाले वाहनों की नियमित चैकिंग न किये जाने से, शालेय परिवहन में लगे वाहनों के द्वारा नियम कायदों को खुलेआम धता बतायी जा रही है। ऐसा करते हुए, स्कूली बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किये जाने के साथ ही स्कूल शिक्षा विभाग और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अव्हेलना भी की जा रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिले भर में लगभग आधा सैकड़ा निज़ि स्कूल संचालित हैं। इनमें से अधिकांश स्कूलों में बच्चों को चौपहिया वाहन से लाया और ले जाया जाता है। इन्हीं वाहनों में आवश्यकता से अधिक बच्चों को बैठाया जा रहा है। इस ओर न तो स्कूल प्रबंधन गंभीरता दिखा रहा है और न ही संबंधित विभाग ही इस दिशा में प्रयासरत हैं।

वहीं सुप्रीम कोर्ट की गाईड लाईन पर गौर करें तो स्कूल बसों में संबंधित स्कूल का नाम, नंबर लिखा होना चाहिये, यदि बस किराये पर ली गयी है तो बस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना अनिवार्य है। स्कूल वाहनों में प्राथमिक उपचार की व्यवस्था, अग्निशामक यंत्र, स्कूल बैग रखने के लिये पर्याप्त स्थान, खिड़कियों में समतल ग्रिल लगी होना चाहिये, स्कूल का एक कर्मचारी बच्चों के साथ हो, ड्राईवर हमेशा वर्दी में हो, वाहन में स्पीड गर्वनर हो ताकि बस की गति न्यूनतम 40 किलो मीटर प्रति घण्टा हो इत्यादि का पालन होना चाहिये, लेकिन क्षेत्र के एक भी स्कूल वाहन में इन निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार क्षेत्र के ज्यादातर स्कूली वाहनों में नौ सवारी और एक चालक की पासिंग है, लेकिन वाहन चालक नियम विरुद्ध तरीके से 15 से 20 बच्चों को तक बैठा रहे हैं। वहीं वाहनों का आरटीओ में पंजीयन स्कूली वाहन के रुप में है और इन वाहनों को स्कूली समय के बाद व्यवसायिक उपयोग में भी लाया जा रहा है।

इन स्कूली वाहनों के मालिकों द्वारा स्कूली वाहनों में स्कूल का नाम, नंबर व रंग इत्यादि भी नहीं करवाया गया है। बावजूद इसके इन वाहनों की जाँच तक नहीं की जा रही है। सूत्रों की माने तो स्कूलों में चलने वाले कुछ वाहनों को कैरोसिन से भी चलाया जा रहा है।

पालकों का कहना है कि जिला मुख्यालय में निज़ि शालाओं की दूरी उनके घरों से ज्यादा होने के कारण शालेय परिवहन में लगी बस, ऑटो, मैक्सी कैब आदि वाहनों में बच्चों को भेजना उनकी मजबूरी है। पालकों का आरोप है कि सरकारी वेतन पाने वाले अधिकारी शालेय परिवहन में लगे वाहनों की ओर से आँखें फेरे क्यों और कैसे बैठ सकते हैं।

यहाँ यह उल्लेखनीय होगा कि लंबे समय से जिला मुख्यालय में यातायात पुलिस और परिवहन विभाग के द्वारा शालेय परिवहन में लगे वाहनों की न तो चैकिंग की गयी है और न ही यह देखने का प्रयास किया गया है कि उनमें सीसीटीवी और स्पीड गर्वनर लगे भी हैं अथवा नहीं!