0 कॉपी, किताब, गणवेश में लुटेंगे . . . 06
सीबीएसई व माशिम से संबद्ध शालाओं में होता है दस लाख तक का खेल!
(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। शालाओं में हर साल नये शैक्षणिक को कॉपी, पुस्तक और गणवेश विक्रेताओं के द्वारा त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। शालाओं में हर साल नया शैक्षणिक सत्र मोटी कमायी का एक जरिया बन चुका है। कोई भी शाला संचालक इस कमायी को छोड़ना नहीं चाहते हैं।
एक प्रकाशक के एजेंट ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि महंगे प्रकाशकों के एजेंट्स नवंबर, दिसंबर माह से ही सिवनी सहित हर जिले में चक्कर लगाकर शाला संचालकों से अपने – अपने प्रकाशन को चलन में लाने की मिन्नतें करते हैं। इसके बाद शहर के कॉपी – पुस्तक विक्रेताओं से इन एजेंट्स का भावताव होता है। कमोबेश यही स्थिति गणवेश के मामले में ही लागू होती है।
उक्त एजेंट की मानें तो सिवनी जिले भर में हर साल एक से डेढ़ करोड़ रूपये की कॉपी – किताब बिक जाती है। इस कारोबार में सारा का सारा खेल कमीशन का ही होता है। पुस्तकों पर अंकित खुदरा मूल्य में किताब विक्रेता को चालीस से साठ प्रतिशत तक का कमीशन मिलता है।
उक्त एजेंट ने कहा कि मार्च माह में परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद ही अगली कक्षा की किताबों को विद्यार्थियों के द्वारा खरीदा जाता है। शहर में एक भी पुस्तक विक्रेता के द्वारा किसी भी उपभोक्ता को पक्का बिल नहीं दिया जाता है। बिल ही जब नहीं दिया जा रहा है तो कितना विक्रय कर, कितना आयकर उक्त विक्रेता के द्वारा जमा कराया जाता रहा होगा यह शोध का ही विषय है।
उक्त एजेंट के अनुसार इस कमायी का बड़ा हिस्सा शाला संचालक या प्राचार्य को सीधे – सीधे दे दिया जाता है, जिसके एवज में शाला संचालकों के द्वारा एनसीईआरटी की बजाय निजि प्रकाशकों की किताबों को चलन में लाया जाता है। इस दो नंबर की कमायी को न तो कहीं लिखा पढ़ी में लिया जाता है और न ही इस पर कोई कर ही देना पड़ता है।
कमीशन की कमायी ऐशोआराम पर खर्च : उक्त एजेंट ने कहा कि स्कूलों में किताब – कॉपियों, फीस के नाम पर ली जाने वाली फीस स्कूलों द्वारा अपने ऐशोआराम में खर्च की जाती है। भले ही स्कूलों में छात्रों की कक्षाओं में स्मार्ट क्लास, स्मार्ट रूम, ड्रिंकिंग वाटर, प्रैक्टिकल एपरेटस, योग्य फेकेल्टी न हो लेकिन स्कूलों में प्राचार्यों के कक्षों में एयर कण्डीशनर, बिग टीवी स्क्रीन, दो से तीन फोन, गलीचा, वीआईपी सोफासेट के अलावा गेट पर पहरेदारी के लिये दरबान जरूर नजर आयेंगे।
पढ़ायी का ढोंग, सुविधाएं रत्ती भर नहीं : कुछ शालाओं को अगर छोड़ दिया जाये तो शानदार पढ़ायी का ढोंग बताने वाले स्कूलों में सुविधाएं रत्ती भर भी नहीं हैं। न तो ट्रेंड स्टाफ है न ही क्वॉलिटी एजुकेशन, जबकि कमीशन की आड़ में साइंस, मैथ्स, फिजिक्स की मोटी – मोटी महंगी किताबों को कक्षाओं में लगाया गया है। किताबों को देखकर कई बार अभिभावक भी मुश्किल में पड़ जाते हैं कि क्या वाकई में बच्चों को इस स्टेण्डर्ड के साथ पढ़ाया भी जा रहा है।