हाई कोर्ट ने दिया उमेश के पक्ष में फैसला
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। केन्द्र एवं प्रदेश सरकार द्वारा अपने स्वार्थ के लिये आदिवासियों के उत्थान की बात कही जाती है और कागजी घोड़े दौड़ाये जाते हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नज़र आती है।
कहने को तो प्रदेश शासन ने वर्ष 2006 में एक अधिनियम आदिवासियों को वनभूमि में अधिकार अधिनियम 2006 में 2007 पारित किया है। बताया जाता है कि चाहे कोई भी भूमि हो यदि आदिवासी कब्जेदार है तो उन्हें पट्टा दिये जाने का प्रावधान है।
देखा गया कि बरघाट विकास खण्ड के ग्राम पनवास के रहने वाले उमेश काकोड़िया पिता प्रताप सिंह काकोड़िया पिछली तीन पीढ़ियों से शासकीय भूमि पर रहकर अपना जीवन यापन कर रहे थे और जिसका खसरा नंबर-19/1 रकबा 0.40 हेक्टेयर भूमि ग्राम ताखला कला में स्थित है। उक्त भूमि उमेश के दादा जुन्ना लाल के नाम से दस्तावेजों में दर्ज है।
गौरतलब है कि उक्त भूमि ग्राम पंचायत पनवास के नाम है। इस संबंध में श्री उमेश का कहना है कि इस भूमि पर तीन पीढ़ी से उनका कब्जा है सरपंच के द्वारा विधि विरूद्ध उक्त भूमि से बेदखल करने का प्रयास किया जा रहा है। उक्त मामले को लेकर उच्च न्यायालय जबलपुर की याचिका क्रमाँक 11648 / 2019 आदेश 10 जुलाई 2019 को न्यायाधिपति संजय द्विवेदी ने तीन माह के भीतर मापकर पट्टा दिये जाने के आदेश पारित किये हैं। इस मामले को लेकर जिला प्रशासन से श्री उमेश ने गुहार लगायी है कि उन्हें मामले को लेकर न्याय प्रदान किया जाये।

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