शोभा की सुपारी बने अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे!

 

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। कर्मचारियों और अन्य लोगों पर नजर रखने के लिये जिला अस्पताल को दो साल पहले सीसीटीवी की जद में लाया गया था। अस्पताल के चप्पे – चप्पे पर नजर रखने वाली तीसरी आँख बीमार चल रही है। इसके बदले अब नये सीसीटीवी कैमरे खरीदकर जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व को बहाने की तैयारी की जा रही है।

ज्ञातव्य है कि तत्कालीन जिलाधिकारी गोपाल चंद्र डाड के कार्यकाल में अस्पताल में सीसीटीवी कैमरे लगाये जाने की योजना पर जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान उन्हें पता चला कि अस्पताल में पहले से ही सीसीटीवी कैमरे लगे हैं तो वे हतप्रभ रह गये थे।

जिला अस्पताल के उच्च पदस्थ सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि अस्पताल में आये दिन कोई न कोई वारदात को अंजाम दिया जा रहा है। इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन के द्वारा सीसीटीवी कैमरों को सुधरवाने की दिशा में किसी तरह का कदम उठाने की बजाय नये कैमरों की संस्थापना का आसान रास्ता निकाला जा रहा है।

सूत्रों ने बताया कि अस्पताल के कैमरों के लिये वार्षिक संधारण (एएमसी) अनुबंध किया जाता रहा है। इसके बाद भी अनुबंध करने वाले प्रतिष्ठान से अस्पताल प्रशासन के द्वारा कभी भी सीसीटीवी कैमरों को सुधरवाने की जहमत नहीं उठायी गयी। अस्पताल के लगभग हर अधिकारी के द्वारा यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता रहा है कि यह उनके कार्यकाल की बात नहीं है। उनके पहले के प्रभारियों ने क्या किया इस पर वे टिप्पणी नहीं करना चाहते।

सूत्रों का कहना है कि हाल ही में 24 मई को जिला अस्पताल से चोरी गये बच्चे के मामले में पुलिस को अस्पताल से सीसीटीवी फुटेज नहीं मिल पाने के कारण पुलिस को अन्य स्थानों से सीसीटीवी फुटेज का इंतजाम करना पड़ा।

अस्पताल में लगी तीसरी आँख में कही कैमरों की दिशा आसमान की ओर कर दी गयी है तो कहीं लीड ही खींचकर निकाल दी गयी है। जिला अस्पताल में तीन दर्जन के आसपास कैमरे लगे हुए हैं। जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह के लगातार हो रहे निरीक्षणों में भी यह बात उभरकर सामने आ चुकी है। इसके बाद भी अस्पताल प्रशासन हाथ पर हाथ रखे ही बैठा दिख रहा है।

जिला अस्पताल में मारपीट से लेकर चोरी और शराबखोरी की घटनाएं सामने आती हैं। बाईक चोरी की एक दर्जन से अधिक घटना हो चुकी है। इसके अलावा डॉक्टरों से मारपीट की वारदातें हो चुकी हैं। लोगो का आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन अपनी गलतियां छुपाने के लिये जान बूझकर सीसीटीवी कैमरा को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाना चाहता है। ओपीडी में डॉक्टरों का समय पर न रहना और सुबह शाम के वक्त डॉक्टरों को वार्डाें में राउंड पर न जाना, इसकी पोल कैमरों के सही लगने से खुल सकती है।