आने वाली पीढ़ी नहीं जान पाएगी कारा मुकासा को!

 

 

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(सादिक खान)

सिवनी (साई)। सिवनी जिले की सरकारी वेब साईट पर शायद किसी का जोर नहीं रह गया है। इस वेब साईट में जिले के सामरिक, धार्मिक, ऐतिहासिक महत्व के अनेक मुद्दों को ही बिसार दिया गया है।

वर्तमान समय में देश भर में पर्यटन को सबसे महत्वपूर्ण उद्योग के रूप में देखा जा रहा है। वन नेशन वन पोर्टल की तर्ज पर बनाई गई सिवनी जिले की सरकारी वेब साईट में अनेक विसंगतियां होने के बाद भी प्रशासन के द्वारा इनमें सुधार की कोशिश तो की जा रही है पर ये कोशिशें नाकाफी ही मानी जाएंगी।

इस पोर्टल में आदिवासी बहुल्य जिला होने के बावजूद आदिवासी समाज से जुड़े स्थानों को बिसार दिया गया है। ऐसा ही एक स्थान है टिकरी बम्हनी जो जिले के उगली क्षेत्र में स्थित है। यहां पर एक व्यक्ति कारा मुकासा की कहानी आज भी लोगों को रोमांचित कर देती है।

जानकार बताते हैं कि इस स्थान पर बैनगंगा का विहंगम नजारा दिखाई देता है जो जिले में कहीं भी नहीं है। इस स्थान को एक बेहतरीन पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। एनआईसी के इस पोर्टल में इस स्थान का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं है।

जानकार बताते हैं कि उगली से लगभग दस किलो मीटर की दूरी में टिकरी बम्हनी के पास बैनगंगा का मनोहारी नजारा लोगों के मानस पटल पर एक अलग छाप बना देता है। इस तरह का नजारा शायद ही कहीं और देखने को मिले।

इस जगह पर नदी के बीचोंबीच में एक टापू है। इस टापू में एक बहुत ही शक्तिशाली इंसान रहा करता था। माना जाता है कि वह अजेय था। सोलहवीं एवं सत्रहवीं शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र में गोंडवाना राजाओं का साम्राज्य बढऩे लगा। इस क्षेत्र में मंडला से लोग आकर बसने लगे।

जानकारों की मानें तो सके कारण स्थानीय निवासियों से उनका टकराव भी होता था, लेकिन कारा मुकासा से जीत पाना गोंड़ राजाओं के वंशजों के लिए असंभव साबित हो रहा था। कहा जाता है कि कारा मुकासा के पास कुछ दिव्य शक्तियां थीं जिसके कारण उसे मार गिराना नामुमकिन था।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि इस दौर में गोंडवाना साम्राज्य के ठाकुर पृथ्वी सिंह क्षेत्र में शासक हुआ करते थे। उन्होंने अपनी कुल देवी चंडी का आह्वान किया। जिसके बाद कारा मुकासा और ठाकुर पृथ्वी सिंह के बीच ढाई से साढ़े तीन दिन तक युद्ध हुआ।

इसके बाद कारा मुकासा को मार गिराया। कारा मुकासा का सिर टिकरी में गिरा और धड़ ठाकुर पृथ्वी सिंह का पीछा करते हुए उगली तक आया। किवदंती है कि इसके बाद ठाकुर ने कारा मुकासा की आत्मा को तलवार के जरिए बांधा। साथ ही स्थानीय निवासियों ने उसकी हर साल पूजा करने की बात कही जिसके बाद धड़ शांत हुआ।

कारा मुकासा को लेकर क्षेत्र में मतभेद बरकरार है। जहां एक पक्ष उसे स्थानीय नागरिकों का रक्षक और वीर मानता है तो दूसरे पक्ष का कहना है कि वह एक दैत्य था जो लोगों को मारकर खा जाता था। हकीकत चाहे जो हो लेकिन आज इस स्थान पर एक स्मारक सा बना दिया गया है जहां पर कारा मुकासा की हर साल पूजा की जाती है।