नवतपा के चलते मौसम में उमस और गर्मी की तीव्रता बरकरार है। ग्यारह बजे के बाद से ही चलने वाली गर्म हवाएं देर शाम तक लोगों को झुलसा रहीं हैं। इन परिस्थितियों में हीट स्ट्रोक, लू आदि से बचने के लिये सावधानियां बरतना आवश्यक है।
इन दिनों सूरज रिकॉर्ड तोड़ने पर आमादा है। पारा भले ही 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा हो पर उमस और गर्म हवाएं लोगों को परेशान किये हुए हैं। हवाओं का रुख गर्म होकर लू और लपट में तब्दील हो गया है। ऐसे में शरीर पर विपरीत असर होना स्वाभाविक है। हालांकि इस बीच बादलों की आवाजाही कुछ राहत देती नजर आती है।
बुखार, डिहाईड्रेशन, पीलिया समेत अन्य बीमारियों के मरीज भी लगातार सामने आ रहे हैं। चिकित्सकों का मानना है कि गर्मी की बीमारियों को सामान्य नहीं समझना चाहिये। कई बार ये जानलेवा भी साबित होती हैं। घरेलू उपाय व कुछ आवश्यक सावधानियां अपनाकर इनसे बचा जा सकता है।
वहीं, डायट्रीशियन्स का कहना है कि मानव शरीर का तापमान हमेशा 37 डिग्री सेल्सियस के आसपास होता है। इतने तापमान पर ही मानव शरीर के अंग सही काम कर पाते हैं। गर्मी में निकलने वाला पसीना भी मनुष्य के शरीर के तापमान को बनाये रखता है, लेकिन आजकल कूलर, पंखों की वजह से पसीना नहीं निकल पाता और शरीर का तापमान गड़बड़ाने की संभावना बनी रहती है। विशेषकर तेज धूप और गर्म हवा के संपर्क में आने से शरीर में पानी की कमी बन सकती है। इससे लू लगने व बुखार की समस्या निर्मित हो सकती है। यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।
बुखार के लक्षण : गर्मी के मौसम में कुछ विशेष बीमारियों का खतरा है। इसके लक्षण पहले से दिखायी देने लगते हैं। सबसे पहली बीमारी है लू लगना। अजीब सी घबराहट होना, मुँह सूखना, तेज बुखार के साथ उल्टियां होना, हाथ – पैरों में दर्द व ऐंठन होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। इससे बचने के लिये जरूरी है कि सिर पर छाता या फिर कोई अन्य छायादार वस्तु का उपयोग करके घर से निकलें। शरीर से पसीने को निकलने दें, लेकिन पानी बराबर पीते रहें।
डिहाईड्रेशन : गर्मी के मौसम में होने वाली सबसे आम बीमारी है डिहाईड्रेशन यानी उल्टी दस्त। इस बीमारी में शरीर में पानी कमी हो जाती है। पानी के असंतुलन की वजह से पसीना आना, उल्टी – दस्त होना आरंभ हो जाता है। पेशाब में पीलापन आ जाता है। कमजोरी महसूस होती और शरीर शिथिल हो जाता है।
यही बाद में बुखार और टाईफाईड का कारण बनता है। पीलिया होने का खतरा भी बढ़ जाता है। इससे बचने के लिये लगातार साफ पानी पीते रहना चाहिये। आम का पना, पतली नमकीन या मीठी लस्सी, नारियल पानी, बेल का शरबत, शिकंजी, छांछ और ओआरएस का घोल, ग्लूकोज आदि का उपयोग किया जा सकता है।
फूड पॉईजनिंग : चिकित्सकों का कहना है कि गर्मी के मौसम में फूड पॉईजनिंग का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसका कारण यह है कि देर तक कटे रखे फलों व सब्जियों में गर्मी की वजह से बैक्टीरिया पनप जाता है। इस तरह की सामग्री का उपयोग करने शरीर में संक्रमण फैल जाता है।
इसे ही चिकित्सकीय भाषा में फूड पॉईजनिंग नाम दिया गया है। इसमें भी उल्टी दस्त, कमजोरी, बुखार जैसी समस्याएं निर्मित होती हैं। शरीर का पानी तेजी से कम होने लगता है, जो जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसके लिये सावधानी बरतने की आवश्यकता है। जहाँ तक संभव हो बाहर के खाद्य पदार्थों के सेवन से बचा जाये। इसके साथ ही साथ देर तक की कटी व बनी रखी हुई सब्जियों व फलों आदि का इस्तेमाल न करें।
इन पर करें गौर : पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर के 37 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर को मेंटेन रखता है। लगातार पसीना निकलने पर थोड़ी देर रुक-रुक कर पानी पीते रहना चाहिये। बाहर का तापमान जब 45 डिग्री सेल्सियस के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँचने लगता है।
यदि शरीर का तापमान 42 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाये तो रक्त गरम होने लगता है और रक्त में उपस्थित प्रोटीन पकने लगता है। प्रोटीन की कमी आते ही स्नायु तंत्र कठोर होने लगता है। साँसें धीमी पड़ने लगती हैं। शरीर का पानी कम होने से रक्त गाढ़ा होने लगता है। ब्लड प्रेशर कम हो जाता है। महत्सपूर्ण अंगों तक खून की सप्लाई रुकने लगती है। रक्त की सप्लाई कम होने से ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है। व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।
ये करें उपाय : लगातार पानी पीते रहें। दिन में कम से कम 05 से 06 लीटर पानी का उपयोग करें। गमछा या अन्य वस्तुओं के रूप में बचाव की सामग्री लेकर ही घर से निकलें। खाली पेट धूप में सफर न करें। सुबह और दोपहर में भोजन के साथ मौसमी फलों का उपयोग करें।
इसके अलावा तरबूज, ककड़ी, खरबूज, संतरा आदि जैसे मौसमी फलों का प्रयोग बहुतायत में करें पर इन्हें काटकर ज्यादा देर न रखें वरन तत्काल ही इन्हें खा लें। नीबू पानी, गन्ने का रस, छांछ, पतली लस्सी, जीरा पानी, पुदीना अर्क, आम का पना, खस के शरबत आदि का उपयोग करते रहना चाहिये। खान पान पर विशेष ध्यान देना चाहिये। खासकर सूर्यास्त के बाद हल्के व सुपाच्य भोजन का ही उपयोग करना चाहिये।
(साई फीचर्स)