लोकसभा चुनाव में चल रहे प्रचार अभियान संभवतः सबसे खूबसूरत तस्वीर केरल के तिरूवनंतपुरम में आई। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण प्रचार में थीं, जब उनको पता चला कि मंदिर में पूजा करते समय कांग्रेस सांसद शशि थरूर को सर में चोट लगी और टांके लगाने पड़े हैं। अपना प्रचार खत्म करके निर्मला सीतारमण उनसे मिलने अस्पताल पहुंचीं। उनका हालचाल जाना और जल्दी स्वस्थ होकर प्रचार में उतरने की शुभकामना दी। निर्मला सीतारमण के इस बरताव से अभिभूत शशि थरूर ने एक भावुक पोस्ट भी लिखी।
पर सवाल है कि क्या एक मंत्री या एक नेता का ऐसा बरताव भारत के राजनीतिक विमर्श में आए दिन हो रही गिरावट को थाम पाएगा? 17वीं लोकसभा के चुनाव का प्रचार गिरावट के नए स्तर दिखा रहा है। एक दूसरे पर निजी हमले इतने आम हो गए हैं कि नेता प्रचार में इस बात का भी ख्याल नहीं कर रहे हैं कि उनका प्रतिद्वंद्वी पुरूष है या महिला। महिला नेताओं के अधोवस्त्रों के रंग का सार्वजनिक बयान हो रहा है।
हिमाचल प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मां को गाली दी। ऐसी गाली, जिसकी कल्पना किसी सभ्य आदमी से नहीं की जा सकती है। वह भी सार्वजनिक मंच से सत्ती ने गाली दी। बाद में उन्होंने कहा कि वे सोशल मीडिया में वायरल हो रही एक पोस्ट पढ़ रहे थे। यह कानूनी कार्रवाई से बचने का एक बहाना भर है। असल मकसद यह दिखाना है कि चौकीदार को चोर कहने वाले राहुल गांधी को सख्त से सख्त भाषा में जवाब दिया गया। राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह की प्रचार भाषा बहुत चिंताजनक है।
सवाल है कि प्रचार की भाषा में ऐसी आक्रामकता, ऐसी हिंसा कहां से आ रही है? भारत का राजनीतिक विमर्श कभी भी इतना अश्लील नहीं रहा है। इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई नेता भारत की सेना को किसी राजनेता की सेना बताए और उस सेना के पराक्रम पर वोट मांगे। ऐसा भी पहले कभी नहीं हुआ कि पड़ोसी देश का डर दिखा कर वोट मांगे जाएं। पड़ोसी देश में जरूर भारत का भय दिखा कर वोट मांगा जाता था पर इस बार उलटी गंगा बह रही है।
ऐसा भी पहली बार हुआ जब एक नेता ने अपनी महिला प्रतिद्वंद्वी के अधोवस्त्र पर टिप्पणी की। अली और बजरंग बली के नाम पर वोट मांगा जा रहा है। कोई चौकीदार को चोर बता रहा है तो कोई चौकीदार को चोर बताने वाले के पूरे खानदान को चोर बताने में लगा है। प्रधानमंत्री स्तर के नेता विपक्षी नेता के मामा और बहनोई को निशाना बनाने में लगे हैं। यह एक ऐसी शुरुआत है, जिसका अंत कहीं नहीं दिख रहा है।
भारत में एक कहावत है- यथा राजा तथा प्रजा। यानी जैसा राजा होता है वैसी ही प्रजा हो जाती है। प्रचार की भाषा में आ रही आक्रामकता, हिंसा और स्तरहीनता पर विचार करते हुए सबसे पहले जो बात समझ में आती है वह यहीं है कि इसकी शुरुआत कहीं बहुत ऊपर से हुई है। सर्वाेच्च पद पर बैठे व्यक्तियों ने जब विरोधी नेता के विदेशी मूल पर टिप्पणी शुरू की। जब अलग अलग आरोपों में पकडे गए इतालवी मूल के लोगों को मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता का मामा कहना शुरू किया तो अपने आप नीचे के नेताओं को इस तरह की अभद्र टिप्पणी करने का लाइसेंस मिल गया। सोनिया और राहुल गांधी के ऊपर हमले में भाजपा के नेताओं ने भाषा का स्तर बहुत गिरा दिया।
पहले भी नेता आक्रामक और भड़काऊ भाषण देते थे पर उनका टोन और कंटेंट दोनों राजनीतिक होता था। नेता अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर बयान देते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है। अब वोट बैंक से ज्यादा निजी छवि की चिंता में स्तरहीन बयानबाजी हो रही है। विपक्ष की तरफ से भी इस मामले में गलती हुई है। प्रधानमंत्री के लिए चौकीदार चोर है का नारा भले राजनीतिक रूप से अपील करने वाला हो पर अंततः यह राजनीतिक विमर्श का स्तर गिराने वाला है। राहुल गांधी के इस नारे के बाद बौखलाई भाजपा ने उनके और उनके परिवार के ऊपर स्तरहीन आरोप लगाने शुरू किए और गाली गलौज शुरू कर दिया।
भाजपा और कांग्रेस के नेता हों या प्रादेशिक क्षत्रप हों सबकी भाषा एक जैसी हो गई है। अपने विरोधी को अपमानित करना और अपने समर्थकों को भी इसके लिए प्रेरित करना आम चलन हो गया है। तभी ऐसा नहीं है कि सिर्फ नेताओं की भाषा में हिंसा, आक्रामकता, अश्लीलता आई है, बल्कि आम लोगों की भाषा में भी हिंसा बढ़ी है। सोशल मीडिया इन दिनों प्रचार को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है। वहां विमर्श की भाषा बेहद अशालीन हो गई है।
पार्टियों के समर्थक एक दूसरे को सिर्फ आभासी दुनिया में जानते हैं पर वे वहां ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। नेताओं की तरह ही उनके समर्थक भी एक दूसरे के दुश्मन हो रहे हैं।
भाषा की यह हिंसा राजनीति के सामान्य विमर्श का हिस्सा हो गई है। इसको ठीक करने का प्रयास नेताओं को ऊपर से ही करना होगा। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सक्रिय करोडों लोग इस विमर्श को नहीं बदल सकते हैं। पर अगर नेता पहल करें तो उसका असर नीचे तक होगा।
(साई फीचर्स)

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