झोलाछाप के आगे बेबस अफसरान!

 

 

(शरद खरे)

सिवनी जिले में झोला छाप चिकित्सकों की पौ बारह है। इनके साथ ही स्वास्थ्य विभाग में स्थानीय स्तर पर विधिवत पंजीयन कराने वाले चिकित्सकों पर भी स्वास्थ्य विभाग की नज़रें इनायत न हो पाने के कारण मरीज़ों की जान पर बन आयी है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय सालों से महज डाकिये की भूमिका में ही दिख रहा है, जिसके द्वारा बार-बार निर्देश जारी कर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री की जा रही है। कार्यवाही के नाम पर नतीज़ा सिफर ही है।

अभी हाल ही में उगली क्षेत्र में एक शिक्षक के द्वारा कथित रूप से 19 वर्षीय एक युवक का उपचार किये जाने के बाद उसकी हालत बिगड़ी। युवक को बालाघाट ले जाते समय उसने दम तोड़ दिया। पुलिस का कहना है कि शिक्षक के पास किसी कॉलेज़ का डिप्लोमा है। मान भी लिया जाये कि शिक्षक के पास डिप्लोमा है तो क्या कोई सरकारी शिक्षक इस तरह उपचार कर सकता है। आखिर नियम कायदे किसलिये बनाये गये हैं!

इसी तरह एक अन्य मामले में झाड़फूंक करने वाले बाबा के द्वारा एक महिला के साथ छेड़छाड़ का मामला भी प्रकाश में आया है। इस तरह के मामले ग्रमीण अंचलों में रोज़ ही घटते होंगे पर इनकी गूंज और अनुगूंज जिला, तहसील मुख्यालय तक नहीं पहुँच पाती होगी जिससे ये गाँव में ही दम तोड़ देते होंगे।

जिलाधिकारी प्रवीण सिंह का ध्यान इस समय स्वास्थ्य विभाग विशेषकर जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं को सुधारने की ओर दिख रहा है। हालात देखकर यही प्रतीत हो रहा है कि जिलाधिकारी प्रवीण सिंह को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के द्वारा भरमाया ही जा रहा है। रंग रोगन और तोड़फोड़ नये निर्माण में जिलाधिकारी का ध्यान केंद्रित कराया जाकर स्वास्थ्य विभाग की मूल समस्याओं से उनका ध्यान हटाने का प्रयास भी किया जा रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, विकास खण्ड चिकित्सा अधिकारी सहित सिविल सर्जन सह मुख्य अस्पताल अधीक्षक के क्या दायित्व हैं! इस बारे में जिलाधिकारी को एक बार बारीकी से अध्ययन करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। सीएमएचओ से जब अस्पताल की बात की जाती है तो उनके द्वारा दो टूक शब्दों में कह दिया जाता है कि जिला अस्पताल का आहरण संवितरण अधिकारी पृथक होता है इसलिये उनका इस पर कोई ज़ोर नहीं है।

बहरहाल, जिलाधिकारी के द्वारा पूर्व में विकास खण्ड स्तर पर झोला छाप चिकित्सकों सहित अन्य चिकित्सकों की जाँच के लिये दल का गठन किया गया था। दो सालों में एक भी चिकित्सक पर कार्यवाही नहीं होने से यही प्रतीत होता है कि जिले में सारे चिकित्सक सही तरीके से प्रैक्टिस कर रहे हैं। अगर ऐसा है तो फिर 45 चिकित्सकों को किस आधार पर नोटिस जारी किया गया है। जाहिर है कहीं न कहीं गफलत अवश्य ही है।

संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के राडार पर स्वास्थ्य विभाग दिख रहा है, इस लिहाज़ से उनसे उम्मीद की जा सकती है कि जिले के स्वास्थ्य विभाग में चल रही झींगामस्ती पर अंकुश लगाने के लिये उनके द्वारा प्रभावी पहल अवश्य की जायेगी ताकि जिले के नागरिक राहत की सांस ले सकें।