अंधेरी रात में सर्चलाइट थामे चुनाव जीत गए मोदी और शाह

 

 

(ऋषि)

कई साल बाद एक्जिट पोल सही निकले। नरेन्द्र मोदी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का माइक्रो मैनेजमेंट सफल रहा। उन्होंने पानीपत की तीसरी लड़ाई जीत ली। अब देश एक नए रास्ते पर चलेगा, जिसकी तैयारी तीन साल पहले से शुरू कर ली गई थी। इस छप्परफाड़ जीत के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि जो पार्टी सरकार चलाती है, उसे अन्य पार्टियों की तुलना में चुनाव प्रचार की दस गुना ज्यादा सुविधा रहती है।

जो सुविधाएं पहले कांग्रेस के पास होती थी, वे अब भाजपा के पास है। भाजपा की इस जीत में कांग्रेस का भी भरपूर योगदान रहा, क्योंकि उसके पास संगठन नाम की कोई चीज नहीं बची है। संगठन को टिकाए रखने वाला कोई नेता कांग्रेस के पास नहीं है। वह पूरी तरह सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर निर्भर है। चुनाव में भाजपा का बहुमत तय होने के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है।

अब कांग्रेस हाईकमान में शामिल तमाम नेता उनसे पद पर बने रहने का अनुरोध करेंगे। हो सकता है उनकी जगह प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं, जो हाल ही कांग्रेस में शामिल होकर महासचिव बनी है। नरेन्द्र मोदी एक तयशुदा कार्यक्रम के तहत जनता के साथ सीधे जुड़ चुके हैं। प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने हर तरह से आम जनता से जुड़ने के प्रयास शुरू कर दिए थे। देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र का सीधा गणित यह है कि जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, वह सरकार बनाती है। 2014 में भाजपा को बहुमत मिला था। मोदी ने सरकार बनाई। इस बार फिर जनता ने उनमें भरोसा जताया और मोदी के नाम पर भाजपा को वोट मिले।

प्रचार माध्यमों के जरिए हर घर में मोदी का नाम पहुंच गया है। देश में करीब 80 फीसदी लोग निर्धन हैं। इनमें आधे से ज्यादा करीब-करीब विपन्न हैं। वे ज्यादा शिक्षित भी नहीं हैं। ऐसे लोगों के वोट कैसे हासिल किए जाएं, इसमें कुशल होना चुनाव जीतने के लिए जरूरी है। यह पराक्रम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने कर दिखाया है। इसके लिए दुनिया भर में उनकी तारीफ होगी। देश में तो वे नेता नंबर वन एंड टू बन ही चुके हैं।

चुनाव से पहले गणित लगाया जा रहा था कि विपक्षी गठबंधन बन रहा है, मोदी को हराने के लिए तमाम पार्टियां एकजुट हो रही हैं, वगैरह-वगैरह। राहुल गांधी सहित कांग्रेस के नेताओं को तो यह लगने लगा था कि केंद्र की सरकार पर अब फिर उनका ही नियंत्रण होने वाला है। इस चुनाव में उनके सपने टूट गए। दरअसल मोदी को जिताने में कांग्रेस का भी भरपूर योगदान रहा। जब प्रियंका को धूमधाम से महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के लिए उतारा गया था, तभी यह तय हो चुका था कि इसका फायदा मोदी सरकार को मिलेगा।

चुनाव प्रचार में भी मोदी और शाह के निशाने पर ज्यादातर कांग्रेस ही रही, जिससे राहुल गांधी बगैर कुछ किए धरे नेता विपक्ष घोषित हो गए थे। उन्होंने सभाओं में नारा लगाया कि चौकीदार चोर है। इस नारे से चुनाव में कुछ भी फायदा नहीं मिला, उल्टे नुकसान हो गया। लोगों ने समझा, यह कैसा आदमी है जो प्रधानमंत्री के बारे में ऐसी बात करता है। दूसरी बात यह कि दूध की धुली कांग्रेस भी नहीं है।

कांग्रेस के शासन में देश की जो हालत हुई, यह उसी का नतीजा है कि मोदी ने 2014 का चुनाव जीता और 2019 के चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस का प्रचार हुआ तो लोगों ने समझा कि इससे तो मोदी कई गुना अच्छे हैं। इस देश का प्रशासन वही है, जिसका ढांचा अंग्रेज तैयार कर गए थे। कानून-कायदे उनके ही बनाए हुए हैं, जिनके दम पर जलियांवाला हत्याकांड होने के बाद भी अंग्रेज सरकार पच्चीस साल तक देश में बनी रही और जब गई तो देश के दो टुकड़े करके कांग्रेस के सुपुर्द कर गई।

उसके बाद से ही कानून-कायदों में किसी भी तरह का बुनियादी बदलाव किए बगैर हिंदुस्तान पाकिस्तान आमने-सामने बने हुए हैं। हिंदुस्तान में पाकिस्तान के विरोध की राजनीति होती है। पाकिस्तान में हिंदुस्तान के खिलाफ राजनीति होती है। पहले कांग्रेस के शासन में यह राजनीति होती थी, अब भाजपा के शासन में भी हो रही है। अंतर सिर्फ इतना है कि कांग्रेस पर अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के आरोप लगते थे। भाजपा बहुसंख्यक तुष्टिकरण की नीति पर चल रही है।

दुनिया को चलाने वाले आकाओं के लिय यह सुविधाजनक स्थिति है कि भारतीय भूभाग में बसने वाले दुनिया के सबसे चतुर चालाक लोग आपस में ही लड़ते रहें। अगर पाकिस्तान नहीं होता तो एयरस्ट्राइक जैसा मुद्दा कहां से मिलता? आतंकियों की कमर कैसे टूटती? तब बालाकोट भारत में ही होता। तब किसको सामने रखकर राष्ट्रवाद का प्रचार होता? अगर पाकिस्तान नहीं होता तो यह देश दुनिया की महाशक्ति बना हुआ होता।

इस देश में करीब 20 फीसदी लोग ही पर्याप्त रूप से संपन्न हैं। इन संपन्न लोगों पर नकेल कसने के लिए दर्जनों आर्थिक कानून है। आयकर, संपत्ति कर, विकास कर, भूमि कर आदि इत्यादि, जिसका सिलसिला अंग्रेज सरकार ने शुरू किया था। जिन लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ होता है, वे अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसी के भी सामने समर्पण करते हैं।

वे राजनीतिक रूप से ताकतवर नेताओं को भेंट चढ़ाते हैं और अपराधियों को भी संरक्षण देते हैं। यही कारण रहा कि चुनावी चंदे के लिए जो बांड जारी हुए थे, उसमें करीब पिच्चानवे फीसदी चंदा भाजपा को मिला, क्योंकि भाजपा सरकार चला रही थी। जब कांग्रेस की सरकार होती थी, तब सबसे ज्यादा चुनावी चंदा कांग्रेस को मिलता था। मोदी सरकार बनने के बाद परिस्थितियां पूरी तरह बदल गई।

अब एक बार फिर मोदी सरकार का नारा सच हो गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और सभी मोदी भक्तों को बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं। अंधेरा और प्रकाश, दोनों ही जीवन के अंग है और हरेक को दोनों का ही समना करना पड़ता है। रात अभी बाकी है। इस अंधेरी रात में सर्चलाइट थामे मोदी और शाह जनता के सामने है। जनता को उन पर पूरा भरोसा है। देखना है आगे क्या होता है। दुनिया जिस रास्ते पर आगे बढ़ रही है, उसके कई पड़ाव हैं। पहले बाहुबली लोग शासन करते थे। बाहुबलियों का समय गुजरा तो अब आर्थिक ताकतों ने सत्ता के सूत्र अपने नियंत्रण में ले लिए हैं। मोदी सरकार आर्थिक ताकत के सहारे फिर से सत्ता में लौट रही है।

गांव-गांव में शौचालय, जो अगर मोदी सरकार नहीं बनती तो लोग बनवाते ही नहीं, क्योंकि उनके पास पैसे नहीं होते हैं। बिजली की सुविधा जो धीरे-धीरे पूरे देश में पहुंच ही रही थी। प्रचार हुआ कि मोदी सरकार ने हर गांव में बिजपी पहुंचा दी है। करोड़ों लोगों को मुफ्त गैस सिलेंडर का वितरण। गरीब किसानों के खातों में कुछ हजार रुपए जमा कराने का पुण्य। बेचारे गरीब हैं, उनको कुछ पैसा दे दो। ऊपर से हिंदुओं का भक्तिभाव, जो हिंदू तो हैं, लेकिन रोजी-रोटी के चक्कर में धर्म का मर्म समझने का समय उनके पास नहीं है।

अगर कोई हिंदू नेता पराक्रम करता है, तो वे समर्थन दे देते हैं। इस तरह कई कारणों से मोदी सरकार को भारी बहुमत मिल गया है। यह धनबल की जीत है। अगला दौर बुद्धिबल का होगा। धनबल का वर्चस्व खत्म होने के बाद अगला दौर बुद्धिबल का आएगा। उसके बाद समझदार लोगों की पूछ परख बढ़ेगी। तब तक मोदी सरकार इस देश की नियति है, जिससे सबको स्वीकार करना पड़ेगा।

पुनश्च रू ईवीएम पर शंका करने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि उसमें कभी कोई गड़बड़ी हो ही नहीं सकती। चुनाव आयोग लोगों को इसका भरोसा दिला चुला है। चुनाव आयुक्त पूरी ईमानदारी से देश के हित में काम करते हैं। वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते। वे पंच परमेश्वर का प्रतिरूप हैं। उनको लेकर जो भी शंका करते हैं, वे मूर्ख हैं।

(साई फीचर्स)

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