शहर में हो रहा अमानक पानी का व्यापार!

 

 

जिले भर में बिक रहे पानी की गुणवत्ता पर लगते आये हैं प्रश्न चिन्ह

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। गर्मी के मौसम के आते ही शीतल पेय और पेयजल की दुकानें सज जाती हैं। न तो नगर पालिका को ही इस बात की परवाह है कि वह पानी की गुणवत्ता जाँचे और न ही खाद्य एवं उद्योग प्रशासन को ही इस बात की फुर्सत है कि वे यह जाँचें कि बाजार में बिक रहा ठण्डा पानी किस गुणवत्ता का है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार गर्मी की आहट के साथ ही पानी बेचने का धंधा चमकता नजर आ रहा है। पानी के सौदागर साधारण पानी को ही पाऊच (200 एमएल) में भरकर उसे दो रूपये में बेच रहे हैं। इस पाऊच पर बड़े – बड़े आईएसआई के सील सिक्के तो दिख जाते हैं किन्तु इनकी निर्माण और अवसान तिथि के साथ ही साथ बैच नंबर्स का अता पता नहीं होता है।

इतना ही नहीं एक लीटर की बोतलों में भरा जाने वाला पानी जिसे मिनरल वाटर की संज्ञा दी जा रही है में कितने मिनरल्स का मिश्रण है, इस बारे में भी शायद ही कोई बता सके। जिले में चल रहे पानी के कारखानों के द्वारा कितने पानी का दोहन किया जा रहा है और कितना व्यवसायिक दर से उनके द्वारा भुगतान किया जा रहा है, इस बारे में भी शायद ही कोई जानता हो।

बीते कुछ वर्षों से बीस लिटर के वाटर जग में ठण्डा पानी बेचने की दुकानें भी महानगरों की तर्ज पर जमकर चल रही हैं। बीस लिटर पानी को बीस रूपये से चालीस रूपये तक में आसानी से बेचा जा रहा है। दुकानदारों के द्वारा बीस लिटर वाले केन को खरीदा जाता है पर दुकानदार शायद ही यह बात जानते होंगे कि दो रूपये लिटर पानी जो वे खरीद रहे हैं, वह कितना शुद्ध है?

मजे की बात तो यह है कि एक वाटर केन सप्लायर के द्वारा छोटा हाथी में एक हजार लिटर की पानी की टंकियों को लादकर उनमें ठण्डा पानी भरकर दुकानदारों के कैन भरे जाते हैं। यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि इस तरह से अगर हजार लिटर की पानी की टंकी के जरिये पानी को स्थान स्थान जाकर बेचा जा रहा है तो वह पानी कितना शुद्ध होगा?

लोगों का कहना है कि इस तरह के जार में पानी प्रदाय करने वालों के द्वारा पानी में किसी तरह का कैमिकल भी मिला दिया जाता है जिससे इस पानी का स्वाद बदल जाता है और लोगों को यह भाने लगता है। जिले भर में न जाने कितने प्रतिष्ठान हैं जिसके द्वारा इस तरह का पानी बेचा जा रहा है।

लोगों का कहना है कि इस तरह के पानी का व्यापार करने वाले व्यापारियों से संबंधित विभागों के द्वारा कभी शायद ही यह पूछा गया हो कि उनके पास पानी कहाँ से आ रहा है! उनके द्वारा आईएसआई या आईएसओ का जो दावा किया जा रहा है वह कितना वैध है! उनके पास आरओ प्लांट है भी या नहीं! और है भी तो कितनी क्षमता वाला और वे प्रतिदिन कितने पानी का  विक्रय कर रहे हैं! इसके अलावा वे आयकर और विक्रय कर के रूप में कितनी राशि सरकारी खजाने में जमा करवा रहे हैं!